जामा मस्जिद शम्सी या ग्रेट मस्जिद शम्सी या मस्जिदे शमसी उत्तर प्रदेश के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक केंद्र बदायूं के में बनी एक शानदार जामा मस्जिद है।
मस्जिदे शमसी बदायूं का निर्माण उस समय दिल्ली सल्तनत के शासक सुल्तान इल्तुतमिश ने 1210 में करवाया था। यह मस्जिद फारसी और अफगान वास्तुकला का उत्कृष्ट नमूना है। इसके तीन द्वार हैं: मुख्य द्वार शकील रोड के सामने खुलता है और यह लाल संगमरमर से बना है, जिसकी लम्बाई 100 फीट है। दूसरा गेट फरशोरी टोला की तरफ है, जब्कि तीसरा दरवाजा मोहल्ला सोथा में स्थित है। इसमें एक केंद्रीय गुंबद है जो दो और गुंबदों से घिरा हुआ है और 5 दीगर गुंबद भी हैं। फर्श सफेद संगमरमर से बनाया गया है। इसके परिसर में एक “हौज़” (तालाब) और तीन “वुज़ूखाना” (वाशरूम और बैठक कक्ष) हैं। मस्जिद के दो किनारों पर आवासीय ब्लॉक बने हैं, जिसको जामा मस्जिद क्वार्टर कहा जाता है।
मस्जिदे शमसी सोथा मोहल्ला नामक एक ऊंचे क्षेत्र पर बनी है और इसे बदायूं शहर में सबसे ऊंची संरचना कहा जा सकता है। मस्जिदे शम्सी बदायूं में इस्लामी गतिविधियों का केंद्र बिंदु है। शुक्रवार की नमाज में हजारों मुसलमान शामिल होते हैं। महान इस्लामी विद्वानों ने यहां सदियों से उपदेश देते आए हैं।
यह मस्जिदे शससी दिल्ली की जामा मस्जिद के बाद देश की तीसरी सबसे पुरानी मौजूदा और सातवीं सबसे बड़ी मस्जिद है, जिसकी मानक क्षमता 23500 है। मस्जिद का निर्मित हिस्सा देश की किसी भी अन्य मस्जिद से बड़ा है। दिल्ली की जामा मस्जिद के विस्तार से पहले यह देश की सबसे बड़ी और सबसे प्रसिद्ध मस्जिद थी। मस्जिद का केंद्रीय गुंबद देश में किसी भी मस्जिद के गुंबद के लिए सबसे बड़ा माना जाता है। यह राष्ट्रीय महत्व का स्मारक और राष्ट्रीय विरासत स्थल भी है। मस्जिद को नीलकंठ मंदिर होने को लेकर सांप्रदायिक ताकतों ने विवाद खड़ा कर दिया है। हमें उम्मीद है कि भारतीय न्यायपालिका मस्जिद शम्सी की रक्षा करेगी।
जामा मस्जिद शम्सी या ग्रेट मस्जिद शम्सी या मस्जिदे शमसी उत्तर प्रदेश के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक केंद्र बदायूं के में बनी एक शानदार जामा मस्जिद है।
मस्जिदे शमसी बदायूं का निर्माण उस समय दिल्ली सल्तनत के शासक सुल्तान इल्तुतमिश ने 1210 में करवाया था। यह मस्जिद फारसी और अफगान वास्तुकला का उत्कृष्ट नमूना है। इसके तीन द्वार हैं: मुख्य द्वार शकील रोड के सामने खुलता है और यह लाल संगमरमर से बना है, जिसकी लम्बाई 100 फीट है। दूसरा गेट फरशोरी टोला की तरफ है, जब्कि तीसरा दरवाजा मोहल्ला सोथा में स्थित है। इसमें एक केंद्रीय गुंबद है जो दो और गुंबदों से घिरा हुआ है और 5 दीगर गुंबद भी हैं। फर्श सफेद संगमरमर से बनाया गया है। इसके परिसर में एक “हौज़” (तालाब) और तीन “वुज़ूखाना” (वाशरूम और बैठक कक्ष) हैं। मस्जिद के दो किनारों पर आवासीय ब्लॉक बने हैं, जिसको जामा मस्जिद क्वार्टर कहा जाता है।
मस्जिदे शमसी सोथा मोहल्ला नामक एक ऊंचे क्षेत्र पर बनी है और इसे बदायूं शहर में सबसे ऊंची संरचना कहा जा सकता है। मस्जिदे शम्सी बदायूं में इस्लामी गतिविधियों का केंद्र बिंदु है। शुक्रवार की नमाज में हजारों मुसलमान शामिल होते हैं। महान इस्लामी विद्वानों ने यहां सदियों से उपदेश देते आए हैं।
यह मस्जिदे शससी दिल्ली की जामा मस्जिद के बाद देश की तीसरी सबसे पुरानी मौजूदा और सातवीं सबसे बड़ी मस्जिद है, जिसकी मानक क्षमता 23500 है। मस्जिद का निर्मित हिस्सा देश की किसी भी अन्य मस्जिद से बड़ा है। दिल्ली की जामा मस्जिद के विस्तार से पहले यह देश की सबसे बड़ी और सबसे प्रसिद्ध मस्जिद थी। मस्जिद का केंद्रीय गुंबद देश में किसी भी मस्जिद के गुंबद के लिए सबसे बड़ा माना जाता है। यह राष्ट्रीय महत्व का स्मारक और राष्ट्रीय विरासत स्थल भी है। मस्जिद को नीलकंठ मंदिर होने को लेकर सांप्रदायिक ताकतों ने विवाद खड़ा कर दिया है। हमें उम्मीद है कि भारतीय न्यायपालिका मस्जिद शम्सी की रक्षा करेगी।
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